ज्योतिष शास्त्र में लग्न कुंडली एवं चंद्र कुंडली के पश्चात 16 वर्ग कुंडलियों (Divisional Charts)अत्यधिक महत्व माना गया है,
क्योंकि वर्ग कुंडलियां लग्न कुंडली की सापेक्ष स्थिति अर्थात और गहराई से जानकारी देने में समर्थ हुआ करती हैं।
इसी संदर्भ में आज Drekkana द्रेष्काण कुंडली जिसे D3 भी कहते हैं के बारे में बात करते हैं। हम पंडित अशोक कुमार शर्मा जी के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने यह article हमारे blog के लिए contribute किया ।
Drekkana / द्रेष्काण कुंडली /D3
What characteristics does it tell about a person?
Drekkana से आत्मबल, स्वयं पर विश्वास, पिता की विरासत, पिता के गुण दोष, जातक का स्वरूप, व्यक्तित्व, भाग्य, सांसारिक सफलता,
भाई बहनों का सुख ,सहयोग, शारीरिक कष्ट, मृत्यु का प्रकार, बंधन ,छुपा क्रोध ,स्वभाव में नम्रता या क्रूरता आदि विषयों का विचार किया जाता है।
एक प्रकार से इसमें लगन अर्थात प्रथम राशि का, पंचम अर्थात् बुद्धि, स्मरण शक्ति, विवेक, ज्ञान और नवम भाव अर्थात भाग्य ,धर्म ,तप, चरित्र, गुण,
पैतृक संस्कार आदि का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। इसलिए लग्न, पंचम, नवम भाव अर्थात राशि का ग्रहण किया जाता है।
प्रमुख रूप से तृतीय भाव का समग्र विचार इसी वर्ग कुंडली से किया जाता है
जन्म लग्न में शुभ संकेतों वाला Drekkana हो तब व्यक्ति को जीवन में सफलता आदि शुभ फल आसानी से प्राप्त होते हैं।
यदि अशुभ संकेतों वाला Drekkana द्रेष्काण कुंडली हो तो जीवन में कठिनाई हानि, कम सफलता तथा कम प्रशंसा मिलती है।
यदि निम्नलिखित में से कोई दो या दो से अधिक स्थिति बने तो जातक लग्नशील, मेहनती, मजबूत इच्छाशक्ति वाला, आदरणीय, सम्मानित, प्रशंसित और अपने कार्य क्षेत्र में नाम कमाने वाला होता है ।
1. किसी भी लग्न में प्रथम Drekkana (द्रेष्काण) हो तथा अधिक ग्रह शुभ पंचक राशियों में स्थित हो ।
2. लग्न कुंडली में जिन राशियों में अथवा जिन भावों में ग्रह स्थित हों यदि उन्हीं राशि अथवा भाव में Drekkana (द्रेष्काण) कुंडली में भी अधिकतर ग्रह स्थित हों।
3. Drekkana लग्न का स्वामी केंद्र, त्रिकोण या द्वितीय अथवा एकादश भाव में शुभ राशिगत हो अथवा उपचय भाव में हो तो प्रसिद्ध तथा परिवार के कारण सम्मानित होता है।
4. जो ग्रह जन्म लग्न से संबंध बनाएं यदि वहीं गृह Drekkana (द्रेष्काण) लगन से भी संबंध बनाए तो प्रसिद्धि व सफलता आसानी से प्राप्त होती है।
5. जन्म लग्न और Drekkana (द्रेष्काण) में अर्थात दोनों में लग्न में अथवा सप्तम भाव में कोई ग्रह उच्च गत हो तो राजयोग देने वाला होता है।
6. गुरु शुक्र चंद्रमा यदि Drekkana (द्रेष्काण) में केंद्र, त्रिकोण में शुभ राशि अथवा शुभ पंचक स्थिति में हो तो अत्यंत शुभ होते हैं। यदि इस स्थिति में 2, 3, 11, 12 भाव में अशुभ पंचकगत ग्रह ना हो तो राजयोग का फल प्राप्त होता है।
7. यदि पक्ष बली चंद्रमा Drekkana में किसी बलवान ग्रह से संबंध बनाए तो बहुत अच्छे फल प्राप्त होते हैं।
8. Drekkana लग्न का स्वामी निर्बल हो अर्थात् नीच अथवा अस्त हो तो जीवन में सफलता में कमी रहती है सफलता के लिए सही गलत हथकंडे अपनाने पड़ते हैं।
9. Drekkana लग्न का स्वामी अशुभ पंचकगत हो तो सफलता और सांसारिक सुखों में अनुपातिक तौर पर कमी रहती है।
राजयोगादि की फल मात्रा
जन्म लग्न कुंडली में यदि लग्नेश प्रथम Drekkana में हो तो राजयोग आदि का फल उत्तम, 2nd Drekkana में हो तो मध्यम तथा तृतीय Drekkana में हो तो साधारण फल होता है। यह विचार सरावली नामक ज्योतिष के मानक ग्रंथ में
मिलता है। दूसरी तरफ उत्तर कालामृत का वचन ज्यादा सुंदर और अनुभव पर ज्यादा खरा उतरता है, उत्तर कालामृत का वचन है कि चर राशियों का प्रथम Drekkana स्थिर राशियों का द्वितीय Drekkana तथा द्विस्वभाव राशियों अंतिम
Drekkana शुभ फल देने वाला होता है। इसका विचार लगन से, लग्नेश से करना चाहिए, जैसे यदि स्थिर लग्न में जन्म हो तो द्वितीय Drekkana अर्थात लग्न 10 से 20 अंश के बीच में हो तो शुभ फल अत्यधिक प्राप्त होंगे इसी प्रकार चर और
द्विस्वभाव लगनों को भी समझना चाहिए।
द्रेष्काण रोग तथा कष्ट का विचार
1. यदि सूर्य मंगल शनि में से कोई भी यदि D3 में 6, 8, 12 भाव गत हो या त्रिकोण में अशुभ पंचकगत हो तो जातक को शारीरिक या मानसिक कष्ट अवश्य होते हैं।
यदि इन्हीं पर अन्य प्रकार से पाप ग्रह योग हो तो कष्ट अधिक होते हैं। ऐसा शनि लंबी अवधि तक चलने वाला रोग, मंगल कष्ट तथा मुसीबत एवं सूर्य रोग तथा कष्ट दोनों देता है।
2. यदि Dreshkan में केंद्र, त्रिकोण में पाप ग्रह हो और D3 का लग्नेश नीच आदि अशुभ पंचक या अशुभ भावगत हो तो कष्ट और रोग अवश्य होते हैं।
3. यदि चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र में से जितने ग्रह बलवान होकर शुभ भाव में हो या लगन से संबंध बनाएं तो कष्ट तथा रोग की मात्रा में कमी करते हैं।
4. यदि D3 लग्न का स्वामी लग्न कुंडली में चंद्रमा तथा पाप ग्रहों से संबंध बनाए तो नाक, कान, कंधा तथा गले के रोग होने की संभावना होती है।
5. यदि D3 लग्न का स्वामी अष्टम भाव में अशुभ पंचक गत हो तो जातक का भाई या बहन दुर्घटना का शिकार होता है।
6. यदि D3 का लग्नेश लग्न कुंडली में गुरु, शनि के साथ हो तो उसके भाई बहन को विश संक्रमण या विश खाने का भय होता है।
7. यदि D3 लग्नेश से छठे आठवें भाव में पाप ग्रह लग्न कुंडली में हो तो जातक को रोग अवश्य होता है तथा अधिक पाप ग्रहों से अधिक घातक रोग होता है।
In Conclusion
Drekkana or द्रेष्काण कुंडली tells some strong characteristics about a person.
Please do consult a professional to understand more about Divisional Charts.
To know more about Kundli. Watch This Video.