सर्वरूप हरि-वन्दन
यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्तेति नैयायिकाः ।
अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः सोऽयं वो विदधातु वाञ्छितफलं त्रैलोक्यनाथो हरिः ।।
भगवान् जगदीश्वर
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु ! जय जगदीश हरे ।।
भक्तजनोंके संकट छिनमें दूर करे ॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुःख विनसै मनका ॥ प्रभु० ॥
सुख-सम्पति घर आवै, कष्ट मिटै तनका ॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी ॥ प्रभु० ॥
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ॥ प्रभु० ॥
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम करुणाके सागर तुम पालन-कर्ता ॥ प्रभु० ॥
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपती ॥ प्रभु० ॥
किस बिधि मिलूँ दयामय ! मैं तुमको कुमती ॥ ॐ ॥ जय जगदीश हरे
दीनबन्धु दुखहर्ता तुम ठाकुर मेरे ॥ प्रभु० ॥
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ॥ प्रभु० ॥
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतनकी सेवा ॥ ॐ ॥ जय जगदीश हरे ॥
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