श्री शनि चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्री शनिदेव दयाला।
करहु कृपा रघुनायक काला॥
देवों में तुम श्रेष्ठ माने।
ग्रह अष्टम में विश्व विधाने॥
जग में धरम की राखो लाज।
धनु पर सदा रहो परिपूर्ण राज॥
चोर सदा भय ग्रस्त भयावन।
पाप कर्म सों सदा सायन॥
कृष्ण वर्ण चतुर्भुज धारी।
त्रिशूल गदा संग मुख भारी॥
नीलांजन के श्याम सुहावे।
दीनन के दुख दूर भगावे॥
सूर्य पुत्र नृसिंह स्वरूपा।
जिनकी द्रष्टि डरावन रूपा॥
कृपादृष्टि चाहत जो कोई।
शरणागति पावन सुख होई॥
ब्रह्मा, विष्णु, महेश पुकारा।
यम-काल भी डरता तुम्हारा॥
सत् पथ से जो रहता है भाई।
उस पर कभी द्रष्टि नहीं आई॥
कृपा करी धनवान बनायो।
दारिद्र-दोष दूर भगायो॥
जो लोग करें सच्चे मन से।
पाठ तुम्हारा नियमित तन से॥
गुरु चरनन में ध्यान लगाते।
मनवांछित फल शीघ्र पाते॥
बीते संकट विपत्ति भारी।
चले वायु शुभ तुम्हारी॥
शनिश्चर देव प्रसन्न सदा।
सुर नर मुनि जय-जय गदा॥
शनि चालीसा जो नर गावै।
शनि प्रसन्न दास सुख पावै॥
॥ दोहा ॥
शनि देव की कृपा से, सुख संपत्ति घर आए।
जो कोई इस चालीसा का, पाठ सदा ही गाए॥
यह चालीसा श्री शनि देव की कृपा प्राप्त करने और जीवन से संकट, कष्ट, एवं बाधाओं को दूर करने हेतु अत्यंत प्रभावी है। इसके नियमित पाठ से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और व्यक्ति को शांत एवं सुखमय जीवन प्राप्त होता है।
श्री शनि देव जी की आरती
जय जय श्री शनिदेव भगतां के संगी।
कष्ट निवारक सुखकर अति भंगी॥
जय जय श्री शनिदेव…
पहिलें शुक्रवार को भक्ति-भाव से।
जो तेरा दर्शन करे मन में आस्था से॥
सुख-संपत्ति और यश पाए।
शत्रु निकट नहीं आने पाए॥
जय जय श्री शनिदेव…
धूप, दीप, नैवेद्य संग तिल का तेल चढ़ाए।
मनवांछित फल सब पावे, जब शरण तेरी आए॥
शनि साढ़ेसाती का संकट हर लो।
भक्तों के सब कष्ट विदारो॥
जय जय श्री शनिदेव…
जो तेरी आरती गावे, शुभ फल शीघ्र ही पाए।
तन-मन धन से रहे निश्चिंत, विजय सभी में पाए॥
दीन दुखियों के संकट हरते।
तेरी भक्ति से बिगड़े काम बनते॥
जय जय श्री शनिदेव…
जय जय श्री शनिदेव भगतां के संगी।
कष्ट निवारक सुखकर अति भंगी॥
यह आरती शनि देव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। शनिवार को शनि देव के मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाकर इस आरती का पाठ करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। जय शनि देव!