भगवान् श्रीसीताराम आरती

भगवान् श्रीसीताराम आरती

भगवान् श्रीसीताराम जयति श्रीजानकिबल्लभ लाल,
करूँ तव आरति होय निहाल ।।

सीस पर क्रीट मुकुट झलकैं,
कपोलन पै झूलें अलकैं,
कर्णमें कर्णफूल चमकै,
नैन कजरारे, मोहनियाँ डारे,
सुमन रतनारे, सो चन्दन कुंकुम केसर भाल ॥ १ ॥

मधुर अति मूरत स्यामल-गौर,
सुछबि जोड़ी राजत इक ठौर,
नहीं है उपमा कोई और,
निरखि रति लजै, मैन मद तजै,
अंग सुभ सजै, सो भूषन बर मुक्ता-मनि-जाल ॥ २॥

परस्पर दो चकोर, दो चंद,
प्रिया-प्रिय अनुपम सुषमा-कंद,
प्रेम-हिय छायो परमानंद,
मंद मृदु हँसन, रुचिर दुति दसन,
मनोहर बसन, दोउ सोहैं गल बहियाँ डाल ॥ ३ ॥

बजत बीना सितार सुमृदंग,
सबै मिलि गावत सहित उमंग,
होत पुलकायमान अँग-अँग,
रंग जब चढ़त, प्रेम हिय बढ़त,
नयन जल कढ़त मधुर स्वर गावत दै दै ताल ॥ ४ ॥

स्वामिनी स्वामि कृपा-आगार,
प्रनत जन रामेस्वर आधार,
जोरि कर बिनवत बारंबार,
कछू नहिं बनत, नेम-तप-वरत,
रहौं पद निरत,
करूँ आरति होइ नव निहाल ॥ ५ ॥ १९

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